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किसानों को धरना-प्रदर्शन करने से रोकना, क्या लोकतंत्र है ?

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गौरतलब है कि  दो महीने पहले केन्द्र सरकार ने कृषि कानूनों को मान्यता देते हुए कहा था कि यह कृषि क़ानून किसानों के समर्थन में है, और किसानों की खुशहाली के लिए बनाया गया है। बहुत जल्द ही इस कृषि क़ानून की पोल खुल गई। पंजाब के किसानों और आम लोगों को लगने लगा कि यह कृषि क़ानून किसान समर्थक नही, यह तो किसान विरोधी है। और यह कानून कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए बनाया गया है।

कृषि क़ानून  के, आने के बा द किसानों ने पंजाब और हरियाणा में मोदी सरकार के खिलाफ संघर्ष मोर्चा खोल दिया है। बीते कुछ महीनों से किसानों ने पंजाब के सभी शहरों में शांति से धरना-प्रदर्शन शुुरू कर दिया है, लेकिन केंद्र सरकार ने किसानों की एक नही सुनी। सोच विचार करने के बाद किसानों के 26-27 नवंबर को दिल्ली कूच करने का प्रोग्राम बना लिया, अब  यह मुद्दा भी काफी गरमाया हुआ है। बीते दो दिनों से हरियाणा और दिल्ली में किसानों को रोकने के लिए सरकार जिस तरह के घटिया हथकंडे अपना रही है, यह सब लोकतंत्र के खिलाफ हो रहा है। मेरे विचार सेे लोकतंत्र में शांति पूर्वक धरना-प्रदर्शन करना, आम आदमी का लोकतांत्रिक अधिकार है।

मिलीं जानकारी के अनुसार  हरियाणा सरकार द्वारा पुलिस को आदेश दिए गए हैं कि किसी भी स्थिति में किसानों को दिल्ली जाने से रोका जाए, चाहे कुछ भी करना पड़े। जिसके चलते हरियाणा पुलिस ने हरियाणा और पंजाब के सभी बॉर्डर्स सख्ती से सील कर दिए हैं। इसके साथ ही किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने वाटर कैनन, आंसू गैस के गोलों की बौछार करनी शुरूू करदीं है।

सोशल मीडिया पर  वायरल हो रही तस्वीरों में देखा जा सकता है कि किसानों को रोकने के लिए बैरिकेड्स के साथ बड़े-बड़े  पत्थर लगा रखे हैं। इसके साथ बैरिकेड्स पर कंटीली तार लगा दी गई है। ताकि किसान अपने ट्रैक्टर और ट्राली लेकर दिल्ली की तरफ किसी भी हाल में आगे न बढ़ पाए। दिल्ली हरियाणा से लगे शहरों में धारा-144 भी लगा दी है। क्या यह लोकतंत्र है, क्या इसी को लोकतंत्र कहते है प्रधानमंत्री नरिंदर मोदी जी इस बात का जवाब मैं नहींं, हमारे देश के किसान और हमारे देश की जनता आपसे माँग रही है ?

 

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