भारतीय ज्योतिष शास्त्रो में नौ ग्रहों (सुर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु) से संबंधित नवरत्नों को बारे में बताया गया है। ये नवरत्न ग्रहों के बुरे प्रभावो से आपको मुक्ति दिलाने के साथ आपका भाग्योदय भी करते हैं। जब कोई ग्रह आपकी कुंडली में अशुभ फल देता है तो ज्योतिषी रत्न धारण करने की सलाह देते हैं। हर रत्न के अपने-अपने फायदे और नुकसान होते हैं। अगर रत्नों को जानकारी के अभाव में धारण किया जाए तो भाग्य वृद्धि होने की बजाय आपको परेशानियां भी हो सकती हैं। लोग रत्न धारण करते समय ग्रह और राशि का तो ध्यान रखते हैं, परंतु उसके वजन पर ध्यान नहीं देते हैं लेकिन रत्न किस धातु में और कितने वजन का धारण किया गया है, उसके अनुसार भी फल देता है, इसलिए रत्न धारण करते समय आपको इस बात की जानकारी होना भी आवश्यक है।
नव ग्रह के रत्नों संबधित कुछ जानकारी।
सुर्य ग्रह का रत्न माणिक्य रत्न है। माणिक्य रत्न कम से कम 5 रत्ती से ऊपर होना चाहिए। इससे नीचे के वजन का रत्न फलदायक नहीं रहता है। इसे सोने की अंगूठी में जड़वाया जाता है। लेकिन यह भी ध्यान रखें की अंगूठी का वजन भी 7 रत्ती से कम न हो। माणिक्य रत्न को जड़वाने के पश्चात इसका प्रभाव चार सालों तक रहता है। इसके बाद इसे बदल देना चाहिए। ध्यान रहे अगर आपकी जन्म कुंडली में सुर्य नीच राशि का है, तो माणिक्य रत्न नही पहनना चाहिए।
चंद्र ग्रह का रत्न मोती है। मोती धारण करते समय सही से जांच अवश्य कर लें। कयोंकि बाज़ार में नकली मोती ज्यादा मिलता है। मोती रत्न को चांदी की अंगूठी में धारण किया जाता है। अंगूठी में सवा 5 यां सवा 7 रत्ती का मोती धारण करना उत्तम रहता है। अगर आप चांदी की अंगूठी में रत्न धारण कर रहे हैं तो इसका भी वजन सात रत्ती से कम न हो। जन्म कुंडली में चंद्रमा नीच राशि का नही होना चाहिए।
मंगल ग्रह का रत्न मूंगा है। मूंगा को सोने यां तांबे की अंगूठी में जड़वाकर धारण करना चाहिए। रत्न का वजन कम से कम 8 रत्ती और अंगूठी का वजन सात रत्ती तो होना ही चाहिए। इससे ऊपर आप कितने भी वजन की अंगूठी ले सकते हैं। मूंगा रत्न धारण करने के तीन वर्षों तक प्रभावशाली रहता है। इसके बाद नया मूंगा धारण करें। आपकी जन्म कुंडली मेंं मंगल नीच राशि का नही होना चाहिए।
बुध ग्रह का रत्न पन्ना है। पन्ना रत्न सोने की अंगूठी में धारण करना चाहिए। पन्ना को 5 रत्ती से ऊपर ही धारण करना चाहिए, क्योंकि पन्ना 5 रत्ती से कम होने पर बहुत ही कम प्रभावशाली होता है। 5 रत्ती से ऊपर का पन्ना अधिक प्रभावशाली माना जाता है। अंगूठी मे जड़वाने के बाद यह तीन वर्षों तक फल प्रदान करता है। बुध आपकी जन्म कुंडली में नीच राशि का नही होना चाहिए।
बृहस्पति ग्रह का रत्न पुखराज है। इसे सोने यांं तांबे की अंगूठी में धारण करना चाहिए। पुखराज हमेशा सवा 5 रत्ती से ऊपर का ही धारण करने पर ही फलदायी रहता है। अंगूठी में जड़वाने के पश्चात पुखराज रत्न 4 वर्ष 3 महीना 18 दिनों तक प्रभावशाली रहता है। तत्पश्चात नया पुखराज धारण करना चाहिए। जन्म कुंडली में बृहस्पति ग्रह नीच राशि का नही होना चाहिए।
शुक्र ग्रह का रत्न हीरा है। हीरे को सोने की अंगूठी में जड़वाना चाहिए। हीरा हमेशा बड़ा धारण करना चाहिए। बड़ा हीरा अधिक प्रभावशाली होता है। हीरा कम से कम 1 कैरेट से ऊपर का होना चाहिए, अगर आप हीरा मंहगा होने के कारण धारण नही कर सकते तो आप ज़रकन भी धारण कर सकते है। जिस अंगूठी में आप रत्न धारण कर रहे हैं उसका वजन 7 रत्ती से ऊपर होना चाहिए। धारण करने के 7 वर्षों के पश्चात तक हीरा प्रभावशाली रहता है। आपकी जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह नीच राशि का नही होना चाहिए।
शनि ग्रह का रत्न नीलम माना गया है। शनि ग्रह का रत्न होने के कारण आप नीलम को पंच धातु या फिर लोहे की अंगूठी में धारण करना चाहिए। इसके अलावा आप सोने में भी जड़वा सकते हैं। अगर आप नीलम धारण करने जा रहे हैं तो कम से कम सवा 5 रत्ती वजन का या इससे अधिक वजन का ही धारण करें। नीलम पांच सालों तक प्रभावशाली रहता है। शनि आपकी जन्म कुंडली मेंं नीच राशि का नही होना चाहिए।
गोमेद रत्न को छाया ग्रह राहु का रत्न माना गया है। गोमेदक को हमेशा सवा 5 रत्ती से ऊपर ही धारण करना चाहिए। जिस अंगूठी में आप गोमेदक धारण कर रहे हैं तो उसका वजन भी 7 रत्ती से ऊपर ही होना चाहिए। इससे कम वजन का रत्न या अंगूठी में यह फलदायी नहीं होता है। गोमेदक धारण करने के पश्चात 3 वर्षों तक प्रभावशाली रहती है।
लहसुनियां रत्न केतु ग्रह को अनुकूल बनाने के लिए धारण किया जाता है। लहसुनिया रत्न को हमेशा सवा 5 रत्ती से ऊपर का धारण करना चाहिए। लहसुनिया को हमेशा लोहे या फिर पंचधातु की बनी अंगूठी में जड़वाकर ही धारण करें। अंगूठी का वजन 7 रत्ती या उससे ऊपर ही होना चाहिए। यह रत्न तीन वर्षों तक प्रभावशाली रहता है।