ज्योतिष विद्या अनुसार मांगलिक यह शब्द सुनते ही विवाह का लड्डू किरकिरा नज़र आने लगता है। जिसके साथ विवाह होना है यदि उसकी कुंडली में मांगलिक दोष हो तो वह, जीवनसाथी नहीं जीवनघाती लगने लगता है। लेकिन बहुत बार जैसा ऊपरी तौर पर नज़र आता है वैसा असल में नहीं होता। ज्योतिषशास्त्री भी कहते हैं कि सिर्फ मांगलिक दोष के कारक भाव में मंगल के होने से ही मांगलिक दोष प्रभावी नहीं हो जाती, बल्कि उसे घातक अन्य परिस्थितियां भी बनाती हैं। यह हानिकारक तभी होता है जब मंगल निकृष्ट राशि का व पापी भाव का हो। कहने का तात्पर्य है कि मांगलिक मात्र कुंडली का दोष नहीं है बल्कि यह कुछ परिस्थितियों में विशेष शुभ योग भी बन जाता है।
क्या है मांगलिक दोष (MANGLIK DOSH) जब कुंडली में लग्न की दृष्टि से मंगल पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें, या बारहवें स्थान पर हो तो ज्योतिषशास्त्री इसे मांगलिक दोष मानते हैं। लेकिन ज्योतिषाचार्य इनमें से सबसे हानिकारक सातवें भाव में मंगल को बताते हैं। इसलिये इस दोष को सतमंगली कहा जाता है। यह जीवनसाथी के लिये घातक माना जाता है।
वो कहावत तो आपने सुनी होगी यां पढ़ी होगी कि लोहे को लोहा काटता है या फिर ज़हर को ज़हर मारता है। इसी तर्ज़ पर यदि दो मांगलिक जातकों का आपस में विवाह करवा दिया जाये तो यही मांगलिक दोष एक बहुत ही शुभ योग बन जाता है।
यदि विवाह के लिये जातकों की कुंडलियों का मिलान करने पर दोनों कुंडलियों में 27 गुण एक दूसरे से मिल जाते हैं तो भी मांगलिक दोष पर ज्योतिषाचार्य विचार नहीं करते यानि इस अवस्था में भी मंगल दोष समाप्त हो जाता है।